कजरी: एक गँवई प्रेम कथा / गौरव पाण्डेय
सूरज के उठने से बहुत पहले
वो उठती
साथ उठती उसकी पायल
उधर खेतों में अलसाई फसलें उठतीं
फसलें बजती
इधर कमर में घुंघरू
घुंघरुओं का शौक देखिए
बकरियों के पैरों में उसने बांध रखे थे कुछ घुंघरू
छुन-छुन-छुनुन-छुन-छुन्छुन
उधर से कोई गुजरता
झाड़ू लगाते
कभी लोटा लिए खेतों की ओर जाते
नहीं तो कुछ देर बाद बर्तन माँजते या कुँआ के पास
रस्सी-बाल्टी लिए दिख ही जाती
दोपहर दो के बाद
खेतों की ओर बकरियों का झुण्ड लेकर जाते
उसे प्रायः देखा जा सकता था
बकरियों के पीछे दौड़ते-भागते ही तो उसकी शाम होती
घुंघरुओं से गूंजते रहते खेत-खलिहान
ऊसर-बंजर
जब बाप गुजरा और माँ उसके चाचा के साथ बैठी
वह बहुत छोटी थी
चाचा के चार बच्चों का गूं-मूत करते बड़ी हुई
नाम कजरी
लेकिन गेंहुआ है उसका रंग
गेहुअन साँप सी लोटती है कजरी सबकी छाती पर
रात-रात भर सपनों में बजते हैं घुँघरू
कुछ बौराये यही कहते-फिरते
अच्छे भले स्वाभाव के लड़के उधर ठहर जाते
पचास पार के कुछ पहुँचे हुए
लफंगों को कोसते गरियाते खुद को छिपाते बातें-बनाते
कितनी इच्छा थी
कि एक बार वे बकरी के बच्चे हो जाएँ
उन्हें वो प्यार से सहलाए
इतना ही नहीं वे यहाँ तक चाहते थे
अगर वो प्यार से बाँध दे दो घुंघरू
तो बकरियों के साथ वह भी घास चर आएं
नाच-नाच जाएँ
छुनुन-छुनुन
अरहर के खेतों ने कजरी को बार-बार आमंत्रित किया
बाजरा और जोन्हरी ने झुक-झुक यहाँ-वहाँ छुआ
साँझ के धुंधलके ने हाँथ पकड़ा
आने-जाने वाले टकराते रहे पगडंडियों में बार-बार
कजरी
किससे क्या कहती?
जब तक हो सका अपने रास्ते आती जाती रही
छुन्नsssछुन्नssssछुन
धीरे-धीरे बंद हुआ उसका बकरी चराना
फिर खेतों की ओर अकेले जाना
फिर कम दिखी कुँआ से पानी भरते
फिर द्वार के दरवाजे पे दिखती रही कभी-कभी
छुन्न-छुन
आख़िरी बार उसे कब और कहाँ देखा गया
नहीं पता
किसी को नहीं पता
कई कहानियाँ हैं
लोगों की तमाम बातें हैं
एक कहानी
गाँव के परधान और कजरी के घर वालों के पास है
पड़ोसियों के पास है एक अलग कहानी
एक कहानी कजरी की सहेली के पास है
एक कहानी
बकरियों के पास है
एक-एक खेतों-खलिहानों पेड़-पौधों
और तालाब के पास है
एक कहानी
घर के दरवाजे और कुँए के पास है
चारपाई और चूल्हे के पास है
मेरे पास कजरी की दो कहानियाँ हैं
अव्वल वह जिसे कजरी की सहेली ने अपने प्रेमी को बताई (जो कवि का मित्र है)
कहना है कजरी ने उसे कसम देकर सुनाई कि वह किसी से न बताये
दूसरी कहानी वह है
जिसे कजरी के बहुत दिनों तक गायब होने पर
तालाब ने बकरी के बच्चे को सुनाई
उस बच्चे की दोस्ती एक छोटी बच्ची से थी
जो अभी बोलना सीख रही थी
उसने टुकड़ो में ये कहानी उसे सुनाई
जिसे उधर से गुजरते बादलों ने सुन लिया
वही कहानी आज अँधेरी रात में बरस रही
बूँदों की लिपि में भीगते हुए कवि चुपचाप सुन रहा है
छुनुन-छुनुन-छुन-छुन्छुन