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कटतै केनाँ रात हे! / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!
होली बितलै दीवाली बितलै, बीती गेलै बरसात हे।

दिन तेऽ काम धाम में बीतै
साँझ दियै में साँझ हे।
घड़ी दू घड़ी सास ननद में
हम्हीं अभागिन बाँझ हे।

कत्तेऽ/गिनियै तारा बोलऽ दिन में झंझावात हे।
पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!

पूस माघ हड्डी में जाड़ा
कट-कट बाजै दाँत हे।
पछिया-पवन बड़ा निर्मोही
काटै भूखलऽ आँत हे।

टप-टप टपकै ओस देह पर चाँद लगाबै घात हे।
पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!

लू लागै वैशाख जेठ में
आँगन बरसै आग हे।
विरह जराबै भीतरे भीतर
हमरऽ जरलऽ भाग हे।

आखिर अषाढ़ मेघ सें कहलौं दिल केऽ सब्भे बात हे।
पिया परदेश अबहूं नैं अयलै कटतै केनाँ रात हे!
होली बितलै दीवाली बितलै, बीती गेलै बरसात हे।

-अंगिका लोक/ जुलाई-सितम्बर, 2011