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कटार मारै छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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तोरा बिना दीवाली बेकार लागै छै।
रही-रही दिलपर कटार मारै छै।
पिछली दीवाली तेॅ
त्योहार लागै छेलै।
सगरो सजावट तेॅ
सींगार लागै छेलै।
तोरा बिना अबरी अंगार लागै छै।
तोरा बिना दीवाली बेकार लागै छै।
की-की अयतै तोहीं
लिखवाय छेलहौ।
दौड़ी-दौड़ी सबकुछ
मंगवाय छेलहौ।
अबकी लोरैलॅ ललकार लागै छै।
तोरा बिना दीवाली बेकार लागै छै।
रही-रही दिलपर कटार मारै छै।
घरे-घोॅर बिजली केॅ
झालर झूलै छै।
आलूबम, छूरछुरिया।
खूब्बे छूटै छै।
मतुर हमरा ईसब खूँखार लागै छै।
तोरा बिना दीवाली बेकार लागै छै।
रही-रही दिलपर कटार मारै छै।
चहल-पहल देखै छीयै।
किस्मत केॅ सीयेॅ छीयै।
मिलबॅ असंभव छै।
मनें मोॅन बूझे छीयै।
मरनाँ सेॅ अच्छा इन्तजार लागै छै।
तोरा बिना दीवाली बेकार लागै छै।
रही-रही दिलपर कटार मारै छै।

10/11/15 सुबह छह बजे