भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कट गया ऐतबार घुटनों तक / रोशन लाल 'रौशन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कट गया ऐतबार घुटनों तक
हर क़दम दोस्ती अपाहिज है

रात फ़ालिज बनी गिरी इस पर
सुबह की रौशनी अपाहिज है

तोड़ डाला उसे अभावों ने
आज का आदमी अपाहिज है

मौत को मात दे नहीं सकती
दोस्तो ! ज़िन्दगी अपाहिज है

गम के हमराह जब भी आती है
इस कदर ये ख़ुशी अपाहिज है