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कट गया ऐतबार घुटनों तक / रोशन लाल 'रौशन'
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कट गया ऐतबार घुटनों तक
हर क़दम दोस्ती अपाहिज है
रात फ़ालिज बनी गिरी इस पर
सुबह की रौशनी अपाहिज है
तोड़ डाला उसे अभावों ने
आज का आदमी अपाहिज है
मौत को मात दे नहीं सकती
दोस्तो ! ज़िन्दगी अपाहिज है
गम के हमराह जब भी आती है
इस कदर ये ख़ुशी अपाहिज है