भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कठिन तनहाइयों से कौन खेला मैं अकेला / मोहसिन नक़वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 कठिन तनहाइयों से कौन खेला मैं अकेला
 भरा अब भी मेरे गाँव का मेला मैं अकेला

 बिछड़ कर तुझ से मैं शब भर न सोया कौन रोया
 ब-जुज़ मेरे ये दुख भी किस ने झेला मैं अकेला

 ये बे-आवाज़ बंजर बन के बासी ये उदासी
 ये दहशत का सफ़र जंगल ये बेला मैं अकेला

 मैं देखूँ कब तलक मंज़र सुहाने सब पुराने
 वही दुनिया वही दिल का झमेला मैं अकेला

 वो जिस के ख़ौफ़ से सहरा सिधारे लोग सारे
 गुज़रने को है तूफ़ाँ का वो रेला मैं अकेला