Last modified on 9 नवम्बर 2017, at 12:30

कठिन राहों पे चलना आ गया है / भावना

कठिन राहों पे चलना आ गया है
मुझे घर से निकलना आ गया है

भला क्या फ़िक्र उसको नींद की हो
जिसे करवट बदलना आ गया है

रही है इस तरह ख़ुशियों की किल्लत
कि बच्चों-सा मचलना आ गया है

चुभन ख़ारों की अपने दिल में रख कर
गुलों के संग चलना आ गया है

न अब इतराओ हाथों की लकीरों !
मुझे किस्मत बदलना आ गया है