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कठिन राहों पे चलना आ गया है / भावना
Kavita Kosh से
कठिन राहों पे चलना आ गया है
मुझे घर से निकलना आ गया है
भला क्या फ़िक्र उसको नींद की हो
जिसे करवट बदलना आ गया है
रही है इस तरह ख़ुशियों की किल्लत
कि बच्चों-सा मचलना आ गया है
चुभन ख़ारों की अपने दिल में रख कर
गुलों के संग चलना आ गया है
न अब इतराओ हाथों की लकीरों !
मुझे किस्मत बदलना आ गया है