भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कठिन वो रास्ते अपनी जगह हैं / डा. वीरेन्द्र कुमार शेखर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKCatGazal


कठिन वो रास्ते अपनी जगह हैं,
रवां कुछ क़ाफ़िले अपनी जगह हैं।

अँधेरे खुश हैं, सूरज ढल गया जो,
वो जुगनू नाचते अपनी जगह हैं।

ज़मीनी असलियत पर ध्यान दो कुछ,
चुनावी सिलसिले अपनी जगह हैं।

करें जम्हूरियत की बात लेकिन,
अधर उनके सिले अपनी जगह हैं।

वो कुछ कहने से पहले लोग देखो,
इशारे भाँपते अपनी जगह हैं।

क़फ़स की तीरगी के बाद भी तो,
दहकते हौसले अपनी जगह हैं।

बधाई चंद्रयानों पर है उनको,
ज़मीं के मसअले अपनी जगह हैं।

-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर