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कठै कांई निपजैला / नीरज दइया
Kavita Kosh से
बण्यो जद म्हैं बादळ
थूं रैयी तिरसाई
पख मांय नीं ही
पून।
चावतां थकां ई
म्हैं नीं बरस सक्यो
चढ्यां पछै आभै
कद तांई उडीकतो म्हैं।
छेकड़ तूटगी पाळ
अर म्हैं हुयग्यो हळको।
जे मांय नीं हुवै बीज
धरती रैय जावै बांझड़ी
म्हारै बरस्यां ई।
अबै कांई ठा
कांई निपजैला
इण रिंधरोही?