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कड़कती धूप को सुबहे-चमन लिखा होगा / मनु 'बे-तख़ल्लुस'
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कड़कती धूप को सुबहे-चमन लिखा होगा
फ़रेब खा के सुहाना सुख़न लिखा होगा
कटे यूँ होंगे शबे-हिज़्र में पहाड़-से पल
ख़ुद को शीरी औ मुझे कोहकन लिखा होगा
लगे उतरने सितारे फ़लक से उसने ज़रूर
बाम को अपनी कुँआरा गगन लिखा होगा
शौके-परवाज़ को किस रंग में ढाला होगा
कफ़स को तो चलो सब्ज़ा-चमन लिखा होगा
हर इक किताब के आख़िर सफ़े के पिछली तरफ़
मुझी को रूह, मुझी को बदन लिखा होगा
ये ख़त आख़िर का मुझे उसने अपनी ग़ुरबत को
सुनहरी कब्र में करके दफ़न लिखा होगा