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कड़क ठंड है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कितनी ज्यादा कड़क ठंड है,
करते सी-सी पापा|
दादा कहते शीत लहर है,
कैसे कटे बुढ़ापा।
बरफ पड़ेगी मम्मी कहतीं,
ओढ़ रजाई सोओ|
किसी बात की जिद मत करना,
अब बिलकुल ना रोओ।
किंतु घंटे दो घंटे में,
पापा चाय मंगाते|
बार बार मम्मीजी को ही,
बिस्तर से उठवाते।
दादा कहते गरम पकोड़े,
खाने का मन होता|
नाम पकोड़ों का सुनकर,
किस तरह भला मैं सोता।
दादी कहती पैर दुख रहे,
बेटा पैर दबाओ|
हाथ दबाकर मुन्ने राजा,
ढेर दुआएं पाओ।
शायद बने पकोड़े आगे,
मन में गणित लगाता|
दादी के हाथों पैरों को,
हँसकर खूब दबाता।