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कड़वी बातों के समान होता कोई आघात नहीं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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कड़वी बातों के समान होता कोई आघात नहीं
बिना यत्न के बन पाती है कोई बिगड़ी बात नहीं

संभव नहीं कदाचित जग में तम के बाद प्रकाश न हो
प्रात न जिसके साथ जुड़ा हो, ऐसी कोई रात नहीं

कठपुतली यह दुनिया सारी नटनागर के हाथों की
उसकी चाहत बिना कभी हिल पाता कोई पात नहीं

ख़ून पसीना बन कर बहता ख़ुशियाँ तभी थिरकती हैं
धो सकती दुर्भाग्य-कालिमा आँसू की बरसात नहीं

कर समझौता साथ ग़मों के, मन मेरे मायूस न हो
नामुमक़िन यह बात कि बदलें मौजूदा हालात नहीं

दीवाना मंज़िल का बरनकर क़दम बढ़ाए हों जिसने
रोक सकें पथ में उसको यह काँटों की औक़ात नहीं

विष के घूँट पचाने पड़ते अमृत चाहने वालों को
दुख-दर्दाे के बिना कभी मिलती सुख की सौगात नहीं

सागर तल तक जाना पड़ता है मोती के चाहक को
‘मधुप’ किनारे बैठ किसी के आता कुछ भी हाथ नहीं