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कड़ी अनुभूतियों के स्वर / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
पानी काटता है जिस तरह पत्थर
काट दूँगा वह अँधेरा
जो कि बरसों से पड़ा है
ज़हर के भीतर
पानी काटता है जिस तरह पत्थर
हर घड़ी, हर दिन, थकन के पार
तेज़ करता हूँ निरन्तर रोशनी की धार
क्या हुआ? यदि चाल है मन्थर
पत्थर काट दूँगा
जो पड़ा है जहन के भीतर
इन कड़ी अनुभूतियों के स्वर
कितने मृदुल हैं—
जानकर हैरान होता हूँ
सत्य तो यह है कि उतनी देर ही
इन्सान होता हूँ
चाहता हूँ मैं
समूचे दिन रहूँ इन्साँ
और घबरा जाएँ मेरी मौत के अक्षर