कतहीं चइता कतहीं फाग / सूर्यदेव पाठक 'पराग'

कतहीं चइता कतहीं फाग
आपन डफली आपन राग

राहजनी बा डेगे-डेग
चोर-उचक्का बा बेदाग

घोटालन के आइल बाढ़
तबहूँ सबके माथे पाग

माली चौकस सींचे रोज
काहे सूख रहल बा बाग

कतहीं काजू किशमिश भोग
अबहूँ दुलम कहीं बा साग

के तइयार, सुनी फरियाद
आपन करनी, आपन भाग

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