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कतार में खड़े अन्तिम व्यक्ति का विदागीत / कुमार शिव
Kavita Kosh से
काले कपड़े पहने हुए
सुबह देखी
देखी हमने दिन की
सालगिरह देखी !
हमको सम्मानित होने का
चाव रहा
यश की मन्दी में पर मन्दा
भाव रहा
हमने चाहा हम भी बनें
विशिष्ट यहाँ
किन्तु हमेशा व्यर्थ हमारा
दाँव रहा
किया काँच को काला
सूर्यग्रहण देखा
और धूप भी हमने
इसी तरह देखी !
हाथ नहीं जोड़े हमने
और नहीं झुके
पाँव किसी की अगवानी में
नहीं रुके
इसीलिए जो बैसाखियाँ
लिए निकले
वो भी हमको मीलों पीछे
छोड़ चुके
वो पहुँचे यश की
कच्ची मीनारों पर
स्वाभिमान की हमने
सख़्त सतह देखी !