कतेक झाँपत / दीपा मिश्रा
कतेक झाँपत
कतेक तोपत
देहक ताप
झँपिते रहल
मोनक उद्गार
तोपिते रहल
सजाओल धजाओल
समाजकेँ उघारब
आब जरूरी भऽ गेल
नहि तँ होइतहि रहत
बेटीक बलिप्रदान
परम्पराक काठबला
महिखा तर
दू-चारि बेरिक
छटपटाहटि भरल
आर्त स्वर
नहि मेटा सकल
लिखलाहा अदृष्ट
किएक त' नहि
सिखाओल गेल कहियो ओकरा
उघारब अपन दुःख
बाँचब मोनक व्यथा
डिबिया बनि जड़ब त'
सिखलक नेनेहिसँ
परंच नहि सीख सकल
मिझायब अपन संताप
बेटा लेल चिचियाइत रहल सब
आर बेटी उपेक्षित रहि गेल
हँ माय सिखौलैन
सीबैत रहियें
मान - मर्यादा, संस्कार, विचार
अपनाकेँ लोक- लाजसँ
सम्हारिकेँ रखमे
कियो कतबो उकटौ
तों चुप्पे रहियें
बेटीक पिता
अपन माथ परहक
पाग ठीक करैत रहलाह
आर कतबो पढल लिखल
कन्याक उचतीमे कहलैन
"हमर बेटी नेने छथि
गलती होइन त' क्षमा करबैन"
ई विश्वास कियाक नै
जे बेटी गलती नै करत
नहि कहि सकलाह बेटीसँ
बिदागरी काल जे
घोघक संस्कारसँ बेसी
आत्मसम्मान आवश्यक
कियाक ने कोनो सासु
मुँहदेखनामे
गहनाक बदला पुतोहुकेँ
ओकर इच्छा
अभिव्यक्तिक स्वंत्रताक
वचन देलैन
डूबैत गेल समाज
मर्यादा आर संस्कारक बाढिमे
आ बहैत गेल कतेको
बेटी पुतोहुक
जीवित लहास ओहिपर
बेंधल हरिण सन कातर
ओकर आँखिमे
तकबाक फुरसति केकरा छल
ओ त' बस ओतबे बुझलक
गहना, गुड़िया, सेनुर, साड़ी,
अलता सबकिछु आनिकेँ दऽ दी
एहिसँ बेसी कोन सुखक एकरा प्रत्याशा
ओ समाज बिसरि गेल जे
सामाक ओहि चिड़ईमे
प्राण सेहो छैक
ओकरो शरीर छैक
सब अंग छैक आ
ओहिमे स्पंदन छैक
ककरो भागक दोष कहि
उज्जर साड़ीमे लपैट देलक
ककरो बाँझक दागीसँ
दागि देलक
कियो बुझबे ने केलक जे
सिंदुरक लकीरक संगो
बिना अनुमति बल प्रयोग
बलात्कार होइत छैक
त' कियो बस टुक टुक
खंजन सन देखैत रहल
अप्पन पीड़ा आर उपहासकेँ
ओ अप्पन स्वीकृति
आ सुख बुझैत रहल
आब ओ जीवित लहास
कमलाक कछाड़मे
नै दहायत भेटत
ओ उठि चुकल
मोन पर ,शरीर पर पड़ल
माटिकेँ झाड़ि
सबटा गहना उतारि
जुमाकेँ फेँक रहल
चेतनाक संचार आवश्यक
आब झाँपय पड़त
समाजकेँ अपनाकेँ कियाक त'
यदि सब उघाड़य लागत
त' भरिसके कोनो
घर एहन बचत
जे नग्न नहि होयत