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कथि केर हे मुँगियाँ कथि केर हे मोतिया / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में एक रूपगर्विता और पतिपरायणा नारी का चित्रण हुआ है। वह अपने पति की प्रशंसा करती है, साथ ही उसे अपने पर इतना भरोसा है कि अगर उसका पित रूठ जायगा, तो जिस प्रकार वह मूँगे की टूटी हुई माला को गुँथवा लेगी तथा बिखरे हुए मोती को चुन लेगी, उसी प्रकार अपने रूठे हुए पति को भी मना लेगी।

कथि केर हे मुँगियाँ कथि केर हे मोतिया, कौने रँग हे ननदो तोर भैया।
सोना केर मुँगियाँ रूप केर हे मोतिया, सबुजा<ref>सब्ज रंग का</ref> रँग हे ननदो तोर भैया॥1॥
कहाँ सोभे मुँगियाँ कहाँ सोभे मोतिया, कहाँ सोभे हे ननदो तोर भैया
गला सोभे मुँगियाँ अँचरा सोभे मोतिया, पलँग सोभे हे ननदो तोर भैया॥2॥
टूटि गेल मुँगियाँ छिलकि गेल<ref>छिटक गया</ref> हे मोतिया, रूसिय गेलअ हे ननदो तोर भैया।
गोथाय<ref>गुँथवा लूँगी</ref> लेब हे मुँगियाँ बिछि<ref>चुन लूँगी</ref> लेब हे मोतिया, बौंसिय<ref>मना लूँगी</ref> लेब हे ननदो तोर भैया॥3॥

शब्दार्थ
<references/>