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कथि लेॅ बाबा बियाह कैलै, सैयाँ घर भेज देलोह हो लाल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रसव-जनित वेदना से विह्वल नारी को पति-गृह आने का दुःख है।उसका अनुमान है कि अगर मैं कुमारी रहती तो इना दुःख नहीं झेलना पड़ता तथा शादी के बाद भी अगर अपनी माँ के घर रहती तो मेरे दुःख को मेरी माँ और बहनें अपने अथक परिश्रम और सेवा-शुश्रूषा से कम कर देती। उसे अपनी सास और ननद के व्यवहार से दुःख है। बेटी को अपनी माँ की ममता का विशेष खयाल रहता ही है।

कथि लय बाबा बिआह कैल<ref>किया</ref>, सैयाँ घर भेज देल हो लाल।
रहितौ हमें बारी कुंआरी, एते दुखबा कहाँ पैतो<ref>पाती; प्राप्त करती</ref> हो लाल॥1॥
अपन मैया रहतिऐ, दरदियो हरी लेतिऐ हो लाल।
परभुजी के मैया हे बेदरदी, दरदी नहीं हरी लिय हो लाल॥2॥
अपन बहिनी रहतिऐ, दरदियो हरी लेतिऐ हो लाल।
परभुजी के बहिनी बड़ी कठोर, दरदी नहीं हरी लिय हो लाल॥3॥

शब्दार्थ
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