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कदंब कालिंदी (पहला वाचन) / अज्ञेय
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टेर वंशी की
यमुना के पार
अपने-आप झुक आयी
कदम की डार।
द्वार पर भर, गहर,
ठिठकी राधिका के नैन
झरे कँप कर
दो चमकते फूल।
फिर-वही सूना अँधेरा
कदम सहमा
घुप कालिन्दी कूल!