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कदमों की खातिर डगर मांगता हूं / जतिंदर शारदा
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कदमों की खातिर डगर मांगता हूँ
मंजिल की खातिर सफ़र मांगता हूँ
दवाओं की मुझको पड़े न ज़रूरत
दुआओं में ऐसा असर मांगता हूँ
मुझे मांगने की आदत है ऐसी
मिला है बहुत कुछ मगर मांगता हूँ
फूलों ने इतना तड़पाया मुझको
मैं जीवन में शूलों के शर मांगता हूँ
प्रजातंत्र देता है अधिकार मुझको
मैं प्रश्नों का उत्तर मुखर मांगता हूँ
मेरे नीड़ का क्षुद्र आंगन है लघुतम
मैं नापूं गगन को वह पर मांगता हूँ
हिमालय की वादी का मैं यायावर हूँ
जो सबसे हो ऊंचा शिखर मांगता हूँ
अमृत ने मुझको दिया ऐसा जीवन
कि मरने की खातिर ज़हर मांगता हूँ
मेरे भाव कब से हैं अर्थों के भूखे
मैं शब्दों में गहरा असर मांगता हूँ
कृपा सिंधु तेरी कृपा का हूँ प्यासा
मैं सिक्ता का तट हूँ लहर मांगता हूँ