कदम-कदम पर ठोकर... / महाराज सिंह परिहार
रत्नों से भरपूर है, पर जनता से दूर है
क़दम क़दम पे ठोकर खाता देश मेरा मज़बूर है
धर्म ने नफ़रत को फैलाया
मानवता का मान घटाया
लूट ग़रीबी और हिंसा ने
माँ भारत का चीर उड़ाया
नाव फँसी झंझावातों में अभी किनारा दूर है
क़दम क़दम पे ठोकर खाता देश मेरा मज़बूर है
वर्ण व्यवस्था से आहत है
इंसानों का मान भी
कर्ण एकलव्य के प्रश्नों से
मौन हुआ भगवान भी
धृतराष्ट्री परचम के नीचे मौन हुए सब शूर हैं
क़दम क़दम पे ठोकर खाता देश मेरा मज़बूर है
अग्नि-परीक्षा सीता देती
राम हुए बदनाम हैं
बरसाता ज़हरीली वर्षा
आज स्वयं घनश्याम हैं
गाँधी और राम के बेटे सभी नशे में चूर हैं
क़दम क़दम पे ठोकर खाता देश मेरा मज़बूर है
अंधकार का चीर के सीना
सूरज को उगना होगा
गली-गली और गाँव-गाँव में
क्रांति-बीज बोना होगा
फन कुचल दो उन नागों के जो हुए मग़रूर हैं
क़दम-क़दम पे ठोकर खाता देश मेरा मज़बूर है