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कदम गाछ / नवीन ठाकुर ‘संधि’

सड़क किनारे डेग-डेग पेॅ कदमे कदम,
लैकेॅ हरियाली कत्तेॅ शोभै छै झमझम।

जखनी एकरा झकझोरै छै हवा बतासें,
ओकरोॅ मोॅन झकझोरै छै डरें हदासें।
शायद! सुगबुगाय केॅ रहै छै पानी पियासें,
मतुर बुझाय छै पियास ओस अकाशें।
तहू पर बिलखै, छै हुलसै छै हौ मन्नेमन,

वहेॅ है छिकै झबरलोॅ कदम रोॅ गाछ,
जेकरा पेॅ कान्हॉ वंशी बजाय छेलै राधा आश।
झाँकी-झाँकी थकेॅ कहाँ राधा-गोपी साथ,
सुनी धुन वंशी रोॅ निहारै नीचेॅ गाछी रोॅ पास।
जेन्हैॅ केॅ मिललै सब्भै प्रेम रोॅ भरम,

कदम बिछलकै जंगलोॅ रोॅ सब गाछ त्यागी।
साँझ बिहान लगन लगैलकै दुन्हू जागी-जागी,
एक दिन अचानक खोजतै आयलोॅ गुवाल-वाल।
कृष्ण छै राधा रोॅ संग आगोश में बेहाल,
शोर मचैतै "संधि" कही-कही यशोदा केॅ भरदम।