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कदम तो बढ़ाओ कभी / प्रेमलता त्रिपाठी

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ध्यान अर्चन न देरी लगाओ कभी ।
भाव सेवा न मन से हटाओ कभी ।

नेह के आस में बीत जाये न पन,
प्रीत की रीति को भी निभाओ कभी ।

कौन अपना पराया न हो धारणा,
भेद मन से सभी तुम मिटाओ कभी ।

बंधनों में रहा खुश न कोई सहज,
मीत स्वातंत्र के भाव लाओ कभी ।

चूमते हर शिखर हम जहाँ ज्ञान से,
पा सको तुम कदम तो बढ़ाओ कभी ।

नित सुबह शाम हो छंद की साधना,
प्रेम को छंद जीवन बनाओ कभी ।