भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कदी मोड़ मुहाराँ / बुल्ले शाह
Kavita Kosh से
कदी मोड़ मुहाराँ ढोलेआ।
तेरीआँ वाटाँ तों सिर घोलेआ।
मैं न्हाती धोती रह गई,
कोई गन्ढ माही दिल बह गई।
कोई सुखन<ref>बोल</ref> अवल्ला बोलेआ।
कदी मोड़ मुहाराँ ढोलेआ।
बुल्ला सहु कदी घर आवसी,
मेरी बलदी भा<ref>आग</ref> बुझावसी।
जीहदे दुःखाँ ने मुँह खोलेआ,
कदी मोड़ मुहाराँ ढोलेआ।
कदी मोड़ मुहाराँ ढोलेआ,
तेरीआँ वाटाँ तों सिर घोलेआ।
शब्दार्थ
<references/>