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कदे ना सोची आपतै के दो-च्यार आने ले ले / लखमीचंद
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कदे ना सोची आपतै के दो-च्यार आने ले ले
मेरा खर्च डेढ़ पा चून का, कीमत ना दो धेले
कंगला लड़का नीवै सै रै, जख्म जिगर नै सीवै सै रै
तूं मुंह ला ला कै पीवै सै रै भर दूधां के बेले
क्यूं होरया सेठ जाण नै रै, तू ना छोड़ै बुरी बाण नै रै
मनै सुखी रोटी दे खाण नै रै, तू छ्यौंके रोज करेले
मैं बिरथा जिन्दगी खोया करता, सांस मारकै रोया करता
मैं सिर पै लकड़ी ढोया करता, तू बेचे भर-भर ठेले
ईब तू सेठ बदी तै टळीए, करके हिसाब मेरै तै मिलिए
’लखमीचन्द’ सोच कै चलिए, गुरू मानसिंह के चेले