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कद तांई / कृष्ण वृहस्पति
Kavita Kosh से
म्हे,
हां म्हे ही देवांला
म्हारी तिस नै कुवा
अर म्हारी भूख नै बाजरी।
म्हारै पांती री राड़
म्हे ई लड़ाला
अर म्है बांधाला
म्हारै घावां उपर ग्याबणा फोआ।
म्हानै ई काटणा है,
म्हारा बायोड़ो
अर म्हानै ई बांवणी है
म्हारी पगथल्यां खातर पाछी सूळां।
म्हानै ई पीवणो है
म्हारै पांती रो मेह
अर म्है ई ओढ़णो है
म्हारै सिरां उपर तण्योड़ो तावड़ो।
म्हारी पीड़ री कवितावां
म्हे ई लिखांला
म्हे ई दिखांला
म्हारै ओदर मांय बळती
इण आग रै आगूंच
अर म्हे ई बुझावाला
बेमाता रा मांड्योड़ा आंक।
आखिर कद तांई
जोवांला बीं री बाट
जिण रै होवण रो नीं है
एक बी सबूत।