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कद बचता पंखेरू / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
इत्तै ऊंचै
आळै में
कुण धरै हो भाठा
घड़ परा गोळ-गोळ
सार भी कांईं
सार हो
घरधणी भेळै
मरण में।
ऐ इंडा है
आळणै में धर्योड़ा
जिण सूं
नीं निकळ सक्या बच्चिया
कद बचता पंखेरू
जद माणस ई नीं बचिया।