कन्ना गुज-गुज कोंन कोंना / परमानंद ‘प्रेमी’
कन्ना गुज-गुज, कन्ना गुज-गुज कोंन कोंना?
पवन बहै पुरबैया धरतीं उगलै सोना॥
आँख मुनि सूझ’ बन्दा बूझ’ तिरंगा बतलाय दे?
लाल किला पर फहरै हरदम हेकरा सभ्भैं बचाय ले।
हेकरेहे खातिर देशऽ के बहलै खून-पसीना।
कन्ना गुज-गुज, कन्ना गुज-गुज कोंन कोंना?
कन्नें बहै छै झर-झर झरना, कन्नें गंगा के धारा?
यै देशऽ क’ कौनें बनैलकै स्वर्गऽ सें भी प्यारा?
कौनें देशऽ के खातिर लुटैलकै भरलऽ खजाना?
कन्ना गुज-गुज, कन्ना गुज-गुज कोंन कोंना?
दखीन बहै छै झर-झर झरना उत्तर गंगा के धारा।
बापू बनैलकै यै देशऽ क’ स्वर्गऽ सें भी प्यारा।
भामा सांह लुटैलकै अपनऽ भरलऽ खजाना।
कन्ना गुज-गुज, कन्ना गुज-गुज कोंन कोंना?
यही धरती पर राम, कृष्ण आरो गौतम नानक ऐलै।
राणा, शिवा, तिलक, बापू यहि धरती खातिर गेलै॥
भगतसिंह, आजाद, सुभाषजी वनलै परवाना।
कन्ना गुज-गुज, कन्ना गुज-गुज कोंन कोंना?
जय जवान जय जय किसान देलकै शास्त्री नारा।
प्रेम के दुनियाँ ‘प्रेमी’ बसाबऽ बनभ’ सभ्भै के प्यारा॥
प्रेमऽ सें सबरीं बैर खिलैलकै जुट्ठ भरी दोना।
कन्ना गुज-गुज, कन्ना गुज-गुज कोंन कोंना?