कन्हैया जी की रास / नज़ीर अकबराबादी
क्या आज रात फ़रहतो<ref>आनन्द</ref> इश्रत<ref>प्रसन्नता</ref> असास है।
हर गुल बदन का रंगींओज़र्री<ref>भड़कीला और सुनहरा</ref> लिबास है॥
महबूब दिलबरों का हुजूम आस पास है।
बज़्मेतरब<ref>खुशी की महफ़िल</ref> है ऐश है फूलों की बास है॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥1॥
बिखरे पड़ें हैं फ़र्श पे मुक़्कैश और ज़री।
बजते हैं ताल घुंघरुओं मरदंग खंजरी॥
सखियाँ फिरें हैं ऐसी कि जूं हूर और परी।
सुन सुन के उस हुजूम में मोहन की बांसरी॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥2॥
आए हैं धूम से जो तमाशे को गुल बदन।
गोया कि खिल रहे हैं गुलों के चमन-चमन॥
करते हैं नृत्य कंुज बिहारी व सद बरन।
और घुंघरुओं की सुन के सदाएँ छनन छनन॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥3॥
पहुंचे हैं आस्मां तईं मरदंग की गमक।
आवाज़ घुंघरुओं की क़यामत झनक झनक॥
करती है मस्त दिल को मुकुट की हर एक झलक।
ऐसा समां बंधा है कि हर दम ललक ललक॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥4॥
हलक़ा बनाके किशन जो नाचे हैं हाथ जोड़।
फिरते हैं इस मजे़ से कि लेते हैं दिल मरोड़॥
आकर किसी को पकड़े हैं, दे हैं किसी को छोड़।
यह देख देख किशन का आपस में जोड़ जोड़॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥5॥
नाचे हैं इस बहार से बन ठन के नंद लाल।
सर पर मुकुट बिराजे हैं, पोशाक तन में लाल॥
हंसते हैं छेड़ते हैं हर एक को दिखा जमाल।
सखियों के साथ देख के यह कान्ह जी का हाल॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥6॥
है रूप किशन जी का जो देखो अजब अनूप।
और उनके साथ चमके है सब गोपियों का रूप॥
महताबियां छूटें हैं गोया खिल रही है धूप।
इस रोशनी में देख के वह रूप और सरूप॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥7॥
हंसती हुई जो फिरती हैं साथ उनके गोपियां।
हैं राधा उनमें ऐसी कि तारों में चन्द्रमा॥
करती है कृष्ण जी से हर एक आन, आन बां।
आपस में उनके रम्ज़ोइशारात<ref>रहस्य और संकेत</ref> का करके ध्यां॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥8॥
यूं यक तरफ़ खु़शी से जो करते हैं नृत्य कान्ह।
और यक तरफ़ को राधिका जी बा हज़ार शान॥
आपस में गोपियों के खुले हैं निशान बान।
दिल से पसन्द करके उस अन्दाज का समान॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥9॥
गर मान-लीला देखो तो दिल से है पुर बहार।
और राधे जी का रूठना और किशन की पुकार॥
बाहम कब्त<ref>तिरस्कार भरी शिकायत</ref> का पढ़ना व अन्दोहे बे शुमार।
इस हिज्र इस फ़िराक़ पे, सौ जी से हो निसार॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥10॥
लीला यहां तलक हैं कहां तक लूं उनका नाम।
करते हैं किशन राधे बहम उनका इख़्तिताम<ref>समाप्ति</ref>॥
दर्शन उन्होंके देख के हैं मस्त ख़ासो आम।
दंडौत करके बादएफ़र्हत<ref>आनन्द-मदिरा</ref> के पी के जाम॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥11॥
इस शहर में ‘नज़ीर’ जो बेकस ग़रीब है।
रहता है मस्त हाल में अपने बगै़र मै॥
शब कोा गया था रास में कुछ करके राह तै।
जाकर जो देखता है तो वां सच है, करके जै॥
हर आन गोपियों का यही मुख बिलास है।
देखो बहारें आज कन्हैया की रास है॥12॥