कन्हैया न यूँ मुस्कुराया करो।
कभी पास भी तो बुलाया करो॥
सुघर छवि तुम्हारी गजब ढा रही
न यूँ दूर रह कर लुगाया करो॥
तुम्हारा ही हैं नाम रटते अधर
सुधा प्रेम कि तुम पिलाया करो॥
ये माना कि मीरा या राधा नहीं
हमें भी कभी मुँह लगाया करो॥
जिसे सुन थी राधा दिवानी हुई
वही माधुरी धुन सुनाया करो॥
ढले रूप जिसमें तुम्हारा वही
हमें संगे मरमर बनाया करो॥
तुम्हारी चरण धूल बन कर रहें
वही मंत्र मोहन जगाया करो॥