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कन्हैया मधुर नाम जप की नदी में / रंजना वर्मा

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कन्हैया मधुर नाम जप की नदी में हमेशा हमेशा नहाते रहें हम
लिये रंग तेरा हुई सांवली जो उसी राधिका को रिझाते रहें हम

किसी का सगा जो कभी बन न पाया उसी विश्व के गीत गाये हमेशा
तुझे श्याम सुंदर भुलाये रहे जो उसी भूल का दंड पाते रहें हम

हुई भानु की नन्दिनी आज गन्दी बड़ी बेरुखी झेलती यह रही है
कन्हैया चराता था गउएं यहीं पर इसे स्वच्छ निर्मल बनाते रहें हम

सदा से रही पाप दुनियाँ के धोती नहीं अब नहाने न पीने के काबिल
कहाती रही ब्रह्मजल जो हमेशा वही नीर गंगा बहाते रहें हम

विपिन वन सभी तो ते'री जिंदगी थे हुए नष्ट सारे हैं' जैसे मरुस्थल
चलो फिर नयी पौध रोपें धरा पर यहीं पर गहन वन उगाते रहें हम

शरद पूर्णिमा की सुहानी निशा में रचाता रहा तू महारास मोहन
मिटा कर हृदय की विषम भावनाएँ वही प्रेम धुन गुनगुनाते रहें हम

परम जो पुनीता पढ़ें श्याम गीता गहें हम सदा कर्म का पन्थ प्यारा
सदा सत्य का न्याय का साथ दे कर बुझा है जो' साहस जगाते रहें हम

बनाये कई मित्र तूने जगत में सखी द्रौपदी पार्थ या फिर सुदामा
चुकाया था ज्यों कर्ज हर दोस्ती का सदा ही मिताई निभाते रहें हम

ते'रा नाम ले कर करें काम सारे ते'रा नाम ले जिंदगानी गुजारें
सुबह आँख खोलें ते'रा नाम ले कर ते'रा नाम ले जग से जाते रहें हम