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कपड़ा बेचती लड़कियाँ / रंजना जायसवाल

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सिर पर लादे कपड़ों की गठरी
और देह पर यौवन
हांक लगा रही हैं
चढती उम्र की लडकियाँ
-ले लो मेमसाब कपड़े
साड़ी..सूट..मैक्सी चादर सब है।
चट-चट बोलती लड़कियों की देह पर
 बड़े गले के फ्रॉक हैं या ढीले-ढाले मँगनी सूट
साड़ी भी पहनी हुई हैं कुछ फुटपाथी
उम्र के हिसाब से
कपड़ों से यहाँ-वहाँ झाँक रहा है
उनका अल्हड यौवन।
लड़कियों के कदम सीधे नहीं अट-पट हैं
चलती हैं लहराती हुई
बातें करती हैं खिलखिलाती हुई
जाने कैसे इतनी खुश हैं
कपड़ा बेचने वाली लड़कियाँ।
'जाओ...जाओ नहीं चाहिए कुछ'-कहती हुई भी
ठहरी हुई हैं कुछ गृहिणियाँ दरवाजों पर ही
कुछ ललचाई नजरों से देख रही हैं
गठरियाँ मानो उनमें छिपा हुआ हो लाल
कुछ ने खुलवा ली हैं गठरियाँ
कर रही हैं मोल-भाव
लड़कियाँ पूरी घाघ हैं -बता रही हैं
कपड़ों के चौगुने दाम
गृहिणियाँ भी कम नहीं -घटा दे रही हैं
चौगुने दाम
दोनों मुस्तैद हैं अपने-अपने मोर्चे पर
 सारे दाँव-पेंचों के साथ
गृहिणियाँ झिड़कती हैं -'जाओ जाओ नहीं चाहिए
तुम्हारा कबाड़'
लड़कियाँ समेट कर कपड़े
मारती हैं ताना -'नहीं है भुसाट?'
जिन घरों में मर्द मौजूद हैं
वहाँ बदल जाती हैं ये लड़कियाँ
बैठती हैं उठती हैं झुकती हैं इस तरह
कि कपड़ों से ज्यादा चमकता है उनका यौवन
बार-बार खिसक जाता है दुपट्टा
गिर जाता है साड़ी का पल्लू
फ्रॉक से साफ़ दिखती हैं कच्ची गोलाईयाँ
मर्द ललचाई नजरों से देखते हैं
नजरें बचाकर गृहिणी से -कपड़ों से ज्यादा
लड़कियों को
और मन ही मन गरियाते हैं ‘विधि’ को
जिसने जंगली भटकुइयों में भरा है इतना ज्यादा
खट्टा-मिट्ठा रस
कुपोषित कदलियों का गदराना नहीं भाता है
मर्दों को
लड़कियाँ अनजान नहीं हैं,उन नजरों से
बड़ी शोखी और अदा से आग्रह कर रही हैं
कुछ ले लेने को
सिखा है उन्होंने अपनी बड़ी-बुढियों से
कपड़ा बेचने का हुनर
देह के प्रदर्शन से पेट -भर कमा लेने की कला
बड़ी चालाक और खुद्दार हैं ये गंवार लड़कियाँ
गृहिणियों का बजट
और मर्दों का ईमान बिगाडकर
बढ़ जाती हैं झटके से आगे
हांक लगाती हुई -ले लो मेम साब कपड़े
सस्ते और बढियाँ कपड़े
साड़ी-सूट मैक्सी चादर सब है।