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कफस/ सजीव सारथी
Kavita Kosh से
आह जो दर्द से होकर गुजरी,
वो भी किसी सरहद पर जाकर,
रुक गयी...
एक सदा जो ख़ामोशी से उठी थी,
वो भी पहाड़ों से टकरा कर,
बिखर गयी...
आसमान पे उड़ने वाले परिंदे की,
परवाज़ जो देखी तो सोचा कि-
मेरी रूह पर,
ये जिस्म का कफस क्यों है ?