भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कबड्‍डी / कन्हैयालाल मत्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तन-मन को चुस्ती-फुर्ती देने वाला,
है सब खेलों में खेल कबड्डी आला !

भुरभुरी मुलायम मिट्टी बहुत खरी है,
चौकोर मैदान लगता मखमली दरी है,
उभरी रेखा-सा बना बीच में पाला !
है सब खेलों में खेल कबड्डी आला !

टीमों की रंग-बिरंगी गंजी-कच्छी,
यह खेल-ड्रेस लगती है कितनी अच्छी,
सबसे पहले जाता है ’टॉस’ उछाला !
है सब खेलों में खेल कबड्डी आला !

पाले के दोनों ओर रैफरी रहते,
जो कुछ होता है सही, वही हैं कहते,
मचता है कभी न कोई गड़बड़झाला !
है सब खेलों में खेल कबड्डी आला !

अपने विरोधियों को जो ख़ूब छकाए,
छू जाए उनको, लेकिन हाथ न आए,
समझो कि खिलाड़ी है वह हिम्मतवाला !
है सब खेलों में खेल कबड्डी आला !

हर बार किन्तु वे मौक़ा कब देते हैं?
जिसको भी पकड़ा, वहीं जकड़ लेते हैं,
यह पकड़-जकड़ है असली कठिन कसाला !
है सब खेलों में खेल कबड्डी आला !

जब एक टीम खोती है एक खिलाड़ी,
दूसरी टीम पा जाती अपना आड़ी,
है यही अन्त तक चलता नियम निराला !
है सब खेलों में खेल कबड्डी आला !