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कबतक हमरा ठगतें रहभो / कैलाश झा ‘किंकर’

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कबतक हमरा ठगतें रहभो ।
बच्चा-बुतरू बुझतें रहभो ।।

सत्ता सुख भोगै केॅ खातिर,
कबतक और झगड़तें रहभो ।।

बेचारी बेकार बनल तों,
कबतक कुर्सी भजतें रहभो ।।

सत्य बात बोलै मेॅ कबतक,
बिल्ली मकतें डरतें रहभो ।।

तिनका मकते कबतक आरो,
‘किंकर‘ धार मेॅ बहतें रहभो ।।