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कबाड़ख़ाने में / चार्ल्स सिमिह / मनोज पटेल
Kavita Kosh से
छोटी सी एक टोकरी बेंत की
बीते दिनों के उन महान युद्धों के
तमगों से भरी हुई
जिन्हें अब कोई याद नहीं करता ।
मैंने पलटा एक तमगा
उस पिन को छूने के लिए
जो चुभी होगी कभी
उस बाँकुरे की फूली हुई छाती में ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल