भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कबाड़ख़ाने में / चार्ल्स सिमिह / मनोज पटेल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छोटी सी एक टोकरी बेंत की
बीते दिनों के उन महान युद्धों के
तमगों से भरी हुई
जिन्हें अब कोई याद नहीं करता ।

मैंने पलटा एक तमगा
उस पिन को छूने के लिए
जो चुभी होगी कभी
उस बाँकुरे की फूली हुई छाती में ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल