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कबाड़ीवाला / त्रिभवन कौल
Kavita Kosh से
कबाड़ीवाला का आगमन
मुझे सोचने पर मजबूर करता है
बेकार की कुछ वस्तुओं को जब
घर के बाहर का रास्ता दिखाया जाता है
और एक प्रश्नचिन्ह छोड़ जाता है
मंथन करने को
काम, क्रोध, लोभ और मोह
मेरे दिलो- दिमांग रुपी घर में बसा कबाड़
बाहर क्यों नहीं निकाल सकता
कब मैं खुद कबाड़ीवाला बन गया
मझे पता ही न चला