भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कबाड़ी / मणि मोहन / कार्ल सैण्डबर्ग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे ख़ुशी है कि ईश्वर ने देखा मृत्यु की तरफ़
और मृत्यु को एक काम सौंप दिया —
उन सब की देखभाल जो थक चुके हैं
जीवन से

जब घिस जाते हैं घड़ी के पहिए
ढीले पड़ जाते हैं कल-पुर्जे
टिक्-टिक् करती घड़ी
गलत समय बताने लगती है लोगों को
और घर के लोग उड़ाने लगते हैं मज़ाक ,
कितनी ख़ुश हो जाती है यह घड़ी
जब यह भारी - भरकम कबाड़ी
अपने वाहन से घर आता है
और अपनी बाँहों में भर लेता है
इस घड़ी को
और कहता है —
" यहाँ तुम्हारी ज़रूरत नहीं
तुम्हें चलना है
मेरे साथ "
कितना ख़ुश हो जाती है यह घड़ी
जब वो महसूस करती है
इस कबाड़ी की बाँहें
अपने इर्दगिर्द
उसे साथ लेकर जाते हुए ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन'