कबीर-रहीम और बदलाव-1 / दिनेश कुशवाह

खरी खोटी कौन कहे कबीर!
अब तो भला-बुरा कोई कुछ भी नहीं कहता
इतने शालीन हो गए हैं लोग
हज़ारों मील चलकर आई चिट्ठियाँ
चिट्ठियाँ नहीं लगतीं
इतने औपचारिक हो गए हैं लोग!
जल-भुनकर भी मुस्कुराते हैं
इतने व्यावहारिक हो गए हैं लोग !!

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