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कबीर बड़ / शैलेन्द्र चौहान
Kavita Kosh से
बड़ी
तुम्हारी आत्मा की पहचान
ताँत, तुम्हारी रगें
तन, रबाब
अभिन्न
परमात्मा और तुम
हम कैसे पहचानें
नर्मदा इस पार
धान, कबीर बड
हैं मंदिर में विराजे
राम
पार धार
हनुमान
नाव, नदी बीच
बड का पेड़ मुस्तैद
छाता ताने मंदिर पर
भक्त, गाते-नाचते
मौज में
खाते खूब
पिकनिक का आनंद बहुत
लहरों के साथ
झिलमिलाती है
कबीर दास की आकृति
नर्मदा प्रवाह में
कोई कैसे सुने
विरहा
और तुम्हारे व
साईं बीच
अकथ संवाद।