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कबूतरबाज / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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एक चीख
खुशी या दुःख की
मुश्किल है समझना
नन्ही-सी जानों को
साँसत में डाले रहती है
पिंजरों के कैदी
अभ्यस्त सुविधाओं के
लौटना चाहते हैं बार-बार
कैद में
मालिक मेहरबान है
उड़ने का मौका देता है
पर अपनी आरामतलबी का
हर कोई कदरदान है
लौटता है बार-बार
उसी संसार में
थोड़ी-सी खुशनुमा धूप में
उड़कर क्या होगा?
जंग चाहे ना लगे परवाज में
पर उड़कर भी कहाँ जाना है?