मुझे नहीं लगता
हमारे पूर्वज
बन्दर थे
क्योंकि वे
अपनी जात के
किसी जीव पर आए
संकट में
हो जाते हैं एक
करते हैं विरोध
नहीं रह सकते
कभी चुप
हमारे पूर्वज तो थे
कबूतर
तभी तो
समाज में किसी इंसान पर
जुल्म और अन्याय होता देखकर
लगा लेते हैं जुबान पर ताला
कहीं मुसीबत न पड़ जाए
हमारे गले
नहीं करते हैं कुछ भी
बने रहते हैं अनजान
सबकुछ देखकर भी
क्योंकि हमने सीख लिया है
कबूतर की तरह
मुसीबत की घड़ियों में
आँखे मींच लेना !