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कब कहा मैंने खूबसूरत हूँ / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
कब कहा मैंने खूबसूरत हूँ
बस वफ़ा कि मैं एक मूरत हूँ
दिल मेरा फूल से भी नाज़ुक है
दर्द दुनिया का जिसमें रहता है
इन निगाहों में तो मेरी हर दम
दर्द का ग़म का दरिया बहता है
कोई हीरा नहीं हूँ पत्थर हूँ
कब कहा मैंने खूबसूरत हूँ
मेरे अपनों का इक ग़ुरूर हूँ मैं
कब कहा तुमसे कोई हूर हूँ मैं
ज़हर नफरत का सबसे पाया है
मैंने बस प्यार ही लुटाया है
साथ रक्खी है अपनी ख़ुद्दारी
और निभाती रही रवादारी
वास्ते तेरे इक ज़रूरत हूँ
कब कहा मैंने खूबसूरत हूँ