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कब तक ? / दिनेश्वर प्रसाद
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कब तक ? यार ! कब तक ? यार !
बालू में गाड़ोगे सूरज को
आग के पौधे निकल आएँगे ।
कब तक ? यार ! कब तक ? यार !
शव को सूई दोगे पारे की ?
उसके हाथ-पाँव गल जाएँगे !
कब तक करोगे हवा की कैंची ?
तुम्हारी स्वागतोक्तियाँ
तुम्हारे रँगमँच पर आने से पहले
मैंने सुन ली हैं ।
मैं तुम्हें हैमलेट खेलने नहीं दूँगा ।