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कब तक करूँ प्रतीक्षा तेरी / रंजना वर्मा

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कब तक करूँ प्रतीक्षा तेरी कब तक राह निहारूं
सूनी मानस अमराई से कब तक तुम्हें पुकारूं॥

करूं प्रतीक्षा यदि जीवन भर
तो भी वह कम होगी,
प्रस्तर प्रतिमा कि आँखें तो
कभी नहीं नम होंगी।
सच पाषाण हृदय समझेगा
कैसे पीर परायी?
एक बात सच कहना याद
हमारी कभी न आयी?

पलकों से चुन-चुन कर काँटे कब तक बाट बुहारूं।
सूनी मानस अमराई से कब तक तुम्हें पुकारूं॥

मन तो है भावों का मंदिर
यादें उस की प्रतिमा,
विश्वासों के दीप जलाकर
आशा पाती गरिमा।
उर कोकिला असंख्य स्वरों में
प्रियतम तुम्हें पुकारे,
कच्चे धागे-सा यह नाता
ढलते साँझ सकारे।

एक बार तुम कह कर देखो तन मन जीवन वारूं।
सूनी मानस अमराई से कब तक तुम्हें पुकारूं॥