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कब तक दूर रहोगे बनकर मेरी श्वांसों के अनुगामी / रंजना वर्मा

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कब तक दूर रहोगे बन कर मेरी साँसों के सहगामी॥

निमिष निशा के अंधकार में
जगते हैं कुछ स्वप्न सलोने,
मेरे सूने एकाकीपन
के साथी हैं चंद खिलौने।

आँख मिचौली छोड़ निकट अब आ भी जाओ अंतर्यामी।
कब तक दूर रहोगे बन कर मेरी साँसो के सहगामी॥

तुम तो मेरे रहे नहीं
मैं भी बन पाई नहीं तुम्हारी,
तुमने बड़े जतन से जीता
जीती बाजी मैं ने हारी।

तुम चाहो तो जीवन के पल विजय पूर्ण हों बहु आयामी।
कब तक दूर रहोगे बन कर मेरी साँसों के सहगामी॥

बहुत अकेला है मन मेरा
यादें छेड़ें सेज सुहानी,
कौन सुनेगा तुम बिन बोलो
मेरी आँसू भरी कहानी।

यदि संभव हो तो आ जाओ बनो न औरों के अनुगामी।
कब तक दूर रहोगे बन कर मेरी साँसों के सहगामी॥