भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कब तक रहोगे दोस्त निगाह-ए-यार के बिना / ईशान पथिक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कब तक रहोगे दोस्त निगाह-ए-यार के बिना?
हमने है काटी उम्र एक प्यार के बिना

है प्यार अगर दिल में , नफरत भी लाज़िमी
क्या देखा खिलते फूल कभी खार के बिना ?

वह बेसबब ही मोड़ गए मुँह तो क्या हुआ
कहलाया है आशिक़ कोई इनकार के बिना ??

छानें न खाक कूचे के तो और क्या करें
लगता कहाँ है दिल कहीं सरकार के बिना??

आंखें बिछाये राह में बैठा है अब "पथिक"
क्या इश्क़ भी हुआ है इंतज़ार के बिना?