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कब तक / प्रेरणा सारवान

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मेरे कमरे के तीन कोने
प्रश्नों की
अन्तहीन
लम्बी दीवारें
औऱ एक मैं
नितान्त अकेली
बादलों की तरह
निराकार होते जा रहेे हैं
यह प्रतीक्षा के
एक - एक क्षण
क्या जाने
कहाँ तक फैलेगा
यह अँधेरा ?
जाने कब
बरस पड़ेगी
धैर्य की धारा
और जाने कब
टूट जाएँगे
यह प्रतीक्षा के क्षण
और मैं न जाने
कब तक
बटोरती रहूँगी
एक क्षण के
लाखों कणों को यूँ ही
दुखों के दल - दल पर।