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कब महकेगा / संतोष श्रीवास्तव
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कब महकेगा मन का रिश्ता कह दो न
राज अभी तक है उसको अब खोलो न
ठहरे पानी जैसा जीवन मुखरित हो
होठों पर सिमटे बोलों को बोलो न
दर्द अकेले सहने की आदत डाली
मेरे हिस्से की खुशियाँ तुम ले लो न
होते हैं दिन रैन उषा में सिंदूरी
गठबंधन यह रंग हमें तुम दे दो न
मिलन ये अपना सदियाँ दुहरायेंगी
गीत अमर हो होठों से तुम छू दो न
दूर है मंजिल तुमसे इतना कहना है
हम तनहा हैं संग हमारे हो लो न