भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कब से अपनी खोज में हूँ मुब्तला मैं / दीप्ति मिश्र
Kavita Kosh से
कब से अपनी खोज में हूँ मुब्तला मैं
कोई बतलाए कहाँ हूँ गुमशुदा मैं
देखती हूँ जब भी आईने में ख़ुद को
सोचती हूँ कौन हूँ नाआशना मैं
ये नहीं वो भी नहीं कोई नहीं ना
ना-नहीं का मुस्तकिल एक सिलसिला मैं
कितने टुकड़ों में अकेली जी रही हूँ
मैं ही मंज़िल, मैं ही रस्ता, फ़ासला मैं
वक़्त के काग़ज़ पे ख़ुद को लिख रही हूँ
शायराना ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा मैं