कब हुई जो आज हो जायेगी सरकारी गजल
खुद बचाना जानती है अपनी खुद्दारी गजल
कल मुहब्बत की सौ बातों से यही लबरेज थी
आज मजलूमों के आँसू से हुई भारी गजल
गीत से नवगीत से पीछे हटे सारे कवि
आज सब पर पड़ रही है किस तरह भारी गजल
तुमने जो बदले नहीं अपने चलन अपने ये ढ़ंग
मैं तुम्हारे साथ चल सकता नहीं शॉरी गजल
आज तक जो सीने पे पत्थर लिए चलती रही
रो पड़ी मिलते ही मुझसे दुख की ये मारी गजल
तब तलक है आदमी की रूह को खतरा नहीं
जब तलक कि आदमी के जिस्म में जारी गजल
यूँ तुम्हारे गीत हैं अमरेन्द्र सब ही पुरअसर
पर सुनाओ आज अपनी तुम कोई प्यारी गजल।